हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,23 रबीअ उल अव्वल सन २०१ हिजरी को हज़रत फातेमा मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा के आगमन से क़ुम का इतिहास एक नए युग में प्रवेश हुआ। यद्यपि आप केवल १७ दिन इस शहर में रहीं, लेकिन आपके दफन ने क़ुम को अम्मुल क़ुरा य शिया" का दर्जा दिया और यह शहर शिया ज्ञान का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और शैक्षिक केंद्र बन गया।
क़ुम; अहले तशय्यो का धड़कता हुआ दिल
आइम्मा ए अतहार अलैहिमुस्सलाम ने हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा की ज़ियारत को जन्नत की गारंटी माना है, जिसके कारण सदियों से मोमिन और उलमा क़ुम की ओर रुख करते रहे हैं। इतिहासकार लिखते हैं कि केवल शिया ही नहीं, बल्कि सुन्नी अमीर और शासक भी आपके मक़बरे की ज़ियारत को नज़दीक़ी की वजह मानते थे।
अहले तशय्यो और शैक्षिक विरासत
हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा के मज़ार की बरकत से क़ुम जल्दी ही ज़ायरीन, व्यापारी और तलबा इल्म का केंद्र बन गया। अश'अरी खानदान और मुद्धिसीन (हदीस के ज्ञाता) ने सीधे आइम्मा ए अतहार अलैहिमुस्सलाम से इल्म हासिल किया और हजारों छात्रों के ज़रिए अहल-ए-बैत की शिक्षाएं ईरान और अन्य इस्लामी इलाक़ों तक पहुंचाईं।
हौज़ा इल्मिया क़ुम; सबसे बडा इल्मी मिरास:
मध्य युग में क़ुम में लाखों उलेमा और तलबा मौजूद थे और सैंकड़ों किताबें यहाँ से इस्लामी केंद्रों तक पहुंचीं। यह शैक्षिक संग्रह बाद में हौज़ा इल्मिया क़ुम बन गया जो आज भी दुनिया भर में अहल-ए-बैत की शिक्षाओं का झंडा बुलंद किए हुए है।
नतीजा
यह कहना गलत न होगा कि ईरान में तशय्ये की स्थिरता और आध्यात्मिक प्रभुत्व का रहस्य हज़रत फातिमा मासूमा सल्लल्लाहु अलैहा की बरकत वाली हिजरत और क़ुम में उनके पाक हरम की मौजूदगी में छुपा है।
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